लौट आए मनचले दिन शीत के

लौट आए मनचले दिन शीत के बाँचती है धूप दोहे प्रीत के   फिर से लिखने लग गई हैं तितलियाँ मख़मली फूलों पे मुखड़े गीत के   मत्ता भँवरों की नफीरी बज उठी तिर रहे हैं सात स्वर संगीत के   दर्प है झोंकों में कुछ जैसे कि ये आए हैं संग्राम कोई जीत के